SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० श्री जैन सिद्वान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan,Arrah, १३४६ चिकित्सासार Opening : च्यारिटाकनि लोफर ल्याइ । तोनि पाव जल में औटाइ ।। अरध रहे जल से छिनवाइ । खाड टाक चालीस मिलाइ॥ ताको नरम विमाम बनाइ। घोट डडसो सीसे पाइ । दसरती ली लोफर नित । हर सिर पीर कास ज्वरपित ॥ सास की दवा-धतूरा पचाग कूट के चिलम में पीव हुक की तरह से सास जाय हुचकी जाय, पेट दरद जाय । नहीं है । Closing , Co'ophon : १३४७ ज्वरहर-यंत्र Opening Clo ing . ज्वरेत्यादिना केवल ज्वरकृतदाहमेव नोपशामयनि कित्वपरा 1१। द ज्वरहर यत्र मया प्रोक्ता तवानधे । उपकाराय लोकाना साधूनां च हिताय वै । गोप्य त्वया सदा भद्रे साधुभ्या नैव गोपयेत् ।।२२४॥ इति । Co'ophen : १३४८• कुट्टककरण छाया व्यवहार Cpening : Closing : भाज्यो ." दुष्टमुछिष्टमेव ॥१॥ शुद्धिजीजाती गुणएवराशित्वेनांगीकृतः ॥१४॥ पचगुणौ ॥७०॥ हर ॥६॥ ' हतशेष ॥१४॥ दशगुणे ॥१४॥ हर ॥६३|| हृतशेष ॥१४॥ एव बहुरवे गुणनामक्य भाज्य अजाणामक्यम प्रकल्प्यसाध्यम् ॥ इति भास्कराचार्य विरचितोलीलावायां कुटुकाध्याय समाप्ता ॥ Colophon :
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy