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श्री जैन सिद्वान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan,Arrah,
१३४६ चिकित्सासार
Opening :
च्यारिटाकनि लोफर ल्याइ । तोनि पाव जल में औटाइ ।। अरध रहे जल से छिनवाइ । खाड टाक चालीस मिलाइ॥ ताको नरम विमाम बनाइ। घोट डडसो सीसे पाइ । दसरती ली लोफर नित । हर सिर पीर कास ज्वरपित ॥ सास की दवा-धतूरा पचाग कूट के चिलम में पीव हुक की तरह से सास जाय हुचकी जाय, पेट दरद जाय । नहीं है ।
Closing ,
Co'ophon :
१३४७ ज्वरहर-यंत्र
Opening Clo ing .
ज्वरेत्यादिना केवल ज्वरकृतदाहमेव नोपशामयनि कित्वपरा 1१। द ज्वरहर यत्र मया प्रोक्ता तवानधे । उपकाराय लोकाना साधूनां च हिताय वै । गोप्य त्वया सदा भद्रे साधुभ्या नैव गोपयेत् ।।२२४॥ इति ।
Co'ophen :
१३४८• कुट्टककरण छाया व्यवहार
Cpening :
Closing :
भाज्यो ." दुष्टमुछिष्टमेव ॥१॥
शुद्धिजीजाती गुणएवराशित्वेनांगीकृतः ॥१४॥ पचगुणौ ॥७०॥ हर ॥६॥ ' हतशेष ॥१४॥ दशगुणे ॥१४॥ हर ॥६३|| हृतशेष ॥१४॥ एव बहुरवे गुणनामक्य भाज्य अजाणामक्यम प्रकल्प्यसाध्यम् ॥ इति भास्कराचार्य विरचितोलीलावायां कुटुकाध्याय समाप्ता ॥
Colophon :