SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०३ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts ( Mantra, Karmakanda ) १३२४. पार्श्वनाथस्तोत्र-मंत्र Opening ! Closing पावं व पातुवो नित्य जिनः परमशकरः । नाथ परमशक्तिश्च शरण सर्व .- ॥ विसध्य य. पठेन्नित्य नित्यमाप्नोति सश्रिय।। श्रीपायपरमात्मे ससेवध्व भोवुधासुकृत् ।। इति श्री पार्श्वनाथस्तोत्र समाप्तम् । Colophon! १३२५. प्रातगायत्री Opening Closing | पार्वत्युवाच देवेधिदेव देवाधिदेवदेवश परमेश्वर पुरातन वदुरवपरयाप्रीत्याविप्राणो मधि वदन मद्भक्ताना हितार्थाय वराण परमेश्वर सन्यामध्यानयुक्त च सूर्याादि सुमाधन । इति महावाक्य ॐ गायत्री चैकपदी द्विपद्री चतुस्पद्यपदसिनहि पद्यस नमस्तेतुरीयाय पदाय तुसीय पददशिताय नमो नम एव चतुर्थाश्रमेन गृहस्थाना प्रसगेन प्रदशित ।। अय प्रातगात्री पिपये सपूर्ण समाप्त । सवत् १२१ कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे ६ शनिवासरे पुस्तक लिख्यते हरयस मिश्र । कासि जी मे लिखी। Colophoat १३२६. सकलीकरणविधान Opening . स्नानानुस्नानशुद्धोघृतशितसुद्धोतान्तरीयोत्तरीय, सकल्पाचम्य प्राणामिति तममृत परिसेचन तर्पण च । आचम्या तस्य शुद्धि पुनरपि सतत शान्नमत्र षडागम्, दिवस ज पात्रिव र परमजपयुत्त स्तादिक्षारययभूः ॥
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy