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________________ ६७ Catalogue otSanskrit, Praktit, Apabhramsa& Hindi Manuscripts (Mantra, Karmakanda ) Closing . दिन २१ तक जप करना, धूप पेवना गुगुल, अगर, तगर, नागरमोथा, छरूछडीला, कचूर, गिरीदाष, वदाम छोहारा, मिश्री घी, का होम करना लक्ष ॥१२५०००। सर्वसिद्धि होय शत्रुभय मिटे लक्ष्मी मिले । कुछ नहीं है। Colophon . १३०५. मत्र Opening ॐ नमो वृषभनाथ मृत्यु जयाय सर्वजीवशरणाय परममत्राय पुरुपाय चतुर्वेदायतताय मम सर्व कुरु-कुरु स्वाहा ॥१॥ ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय हसमहाहस परमहस. कोहस अहहस पक्षिमहाविपक्षि ह. फट् स्वाहा । इति मत्र सम्पूर्णम् । Closing . Colophon १३०६. मत्र Opening ! Closing ॐ नमोऽहते भगवते श्रीपाश्वनाथाय धरणेद्रपद्मावतीसहिताय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल महाग्निस्थभय-२. ॐ को प्रो प्री प्र.ठ ठ स्वाहा । अभिपेक सुद्धि तिहका नाला तल न्हाव-उपवास १०० एक भक्त कर जु पाली पाषी देय वें का हाथ को अहार लेणू नही। इति सपूर्णम् । Colophon: १३०७. मंत्रसग्रह Opening : ॐ ह्रो ह्रीहूँ ह्रो हह्र अमिआउमाय नम अपराजित मनोय विघ्न नासय नासय कुरु कुरू स्वाहा ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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