________________
८२
श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah.
Colophon!
इति श्री नददासेन कृता मानमजरी नाममाला सपूर्णम् । शुभम् अस्त । पाठकस्य शुभ भूयात् । सवत् १८०६ । शाके १६७१ ॥ पौष वदि अष्टमी गुरुवासरे पुरैनिआ नगरे फतेहपुर ग्रामे श्री खेदु पाण्डेय पुस्तकमिद लेखि। १२५८. नवरत्न-कवित्त .
Opening : धन्वतरि छिपनकअमरघटकर्पवेताल ।
वररुचि-सकु-वराहमिहरकालिदासनवलाल ॥१॥ कुलवत पुरुष कुलविधि तजै वधु न मानै बन्धु हित ।
सन्यास क्षरिधन सग्रहै ए जग मे मूरख विदित ।। Colophon ' इति नवरत्न कवित्त समाप्त ।
Closing :
कुलवत पु
१२५९. नेमिचन्द्रिका अस्पष्ट ।
Opening
Closing ! विशेष
अस्पष्ट ।
यह अथ एक गुटका है, जो बहुत ही अस्पष्ट है। बीच के कुछ पत्र पढे जा सकते हैं।
१२६०. नेमिचद्रिका
Opening :
Closing :
आदिचरण हिरदै धरी, अजित चरणचित लाइ । सभव सुरत लगाइक अभिनदन मनु लाइ ॥१॥ तो होई ब्याह को साज काज वहुविधि सो कीन्हो । देस देस प्रति नृपति सवनि को: " ॥ अनुपलब्ध।
Colophon:
१२६१. नेमिचंद्रिका
Opening |
देखें, ऋ० १२६० ।