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________________ Catalogue of Sanskrit, Praktit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts ( Rasa-Chanda - Alankara- kavya ) Opening : Closing : Colophon : Opening C.osing Colophon⚫ Opening Closing ५१ १२५५ कृपणपचीसी एक समदेहरा में पत्रनव जुरे हुते भघ इनवात जिहाँ जातकी चलाई है | चालो भले गिरिनारि नेमनाथ परिस्यैवेको जनम सफल तिहा योति बढाई है । तहाँ एक बैठी हुनी किरण पुरिपनार उने सुनी बात आनि घर मे चलाई है । मुनि हो पियारे पिउ जोयारे आवं जिनु हमें नुमे दोउ बोलो वली वन भाई है ॥१॥ कहे लाल विनोदी भव सुनो धन पाय जस लीजिये । करिजाज प्रतिष्ठा जग्य जिनसुदान सुपात्रा दीजिये ॥ इति श्री कृपणपचीगी समाप्तम् । १२५६ मालपचीसी सुरलोकास मूतीर्थ्या सौधर्मेण निर्मिता । माघे चैत्रे वृहद्वारे भव्यर्माला प्रतिष्ठिते ॥१॥ माला श्री जिनराज की पार्व पुन्य मजोग । जम प्रगटै कीरति बर्दै धन्य कहे सब लोग || ३६ || इति मालपचीसी । १२५७. नाममाला त नमामि पर परमगुरु कृष्ण कवल दल नेन । जग कारन करुना निधे गोकुल जाकी अन ||१|| जमल जुगल जुग द्वद्व है, उभय मिथुन विविधीय । जुगल किसोर सदा वनौ, नददास के हीय ।। २५६।।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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