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क्र० ६६८ मे १०६८ के बीच लगभग पचास ऐसे ग्रन्य है जो पूजा से-सम्बन्ध रखते है क्योकि वास्तव में यह प्राय व्रत-कथाएँ है। ऐमी कथाओ मे पूजा-अर्चना की प्रधानता होती है। इसी के साथ कथा कही जाती है, जिससे जनसामान्य धर्म से प्रभावित होकर आत्मोन्नति की ओर प्रवृत होता है। क्योकि बाल-बुद्धि लोगो के प्रतिबोध के लिए कहानी ही सबसे अधिक उपयोगी एव सरल विधा है ।
प्रस्तुत सूची मे तत्त्वार्थ सूत्र, द्रव्यसग्रह, भक्तामरस्तोत्र, कल्याणमन्दिर स्तोत्र, विषापहार स्नात्र, सिद्वपूजा आदि की प्रतियाँ बहुमप्यक है। क्रम संख्या १३६१ से २०२० तक स्तोत्र एव पूजा-विधान के ही ग्रय है। एक विपर के इतने अधिक ग्रन्थो का एक सार सग्रह हाना, अपने आपमे महत्वपूर्ण है। आयुर्वेद के शारदातिलक सटीक वैद्यमोत्पा, योगविनाग, वैद्य भूपग प्रभृति प्रयो की पाण्डुलिपियाँ विशेष महत्व की तमा प्राचीन भी है ।
___ अन्य प्रथागारो मे उपलब्ध हन्नलिखित प्रतियो के सन्दर्भ यथास्थान दिये गये है। इस 1 पिद्वान भवन ग्रन्यावती भाग -१ के भी मन्दर्भ दिये गये हैं। यह मन्दर्भ प्रतियो के खोजने में सहयोगी होगे। इममे यह भी ज्ञात होता है कि देशभर के अनेक शास्त्रभण्डारो, मदिरो तथा मस्थानो मे हस्तलिखित ग्रन्यो की भरमार है। जो Tी ना अपमागिा पड़े हुए है। उन्हें प्रकाश में लाने की दिशा मे जो प्रयत्न हो रहे है, वे पर्याप्त नही है। विद्वानो, अनुगन्धाताओ. तया सम्बद्ध सम्याओ को इसे एक आन्दोलन के रूप आगे बढाने का उपाय करना चाहिए।
ग्रन्थावली के इस भाग को तैयार करने मे डा. गोकुलचद्र जैन, वाराणसी, श्री सुवोधकुमार जैन श्री अजय कुमार जैन आदि व्यक्तियो का महत्वपूर्ण निर्देशन रहा है। उक्त सभी का हृदय से आभारी हूँ। आशा है भविष्य में भी सवका निर्देशन एव सहयोग आशीष पूर्वक प्राप्त होता रहेगा। ग्रयावली क सम्पादन, मयोजन मे जो त्रुटियाँ हुई है, उनके लिए विजन क्षमा करेगे ।
ऋषभचन्द्र जैन फौजदार
शोधाधिकारी, देयकुमार जैन प्राच्य शोध संस्थान
आरा (बिहार)