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तीन मिद्धान्त गबन, आरा का एक विभाग श्री देवकुमार जैन प्राच्य शोध सस्थान है। इसमे प्रासत और जैन विद्या की विभिन्न विधाओ पर शोधार्थी कार्य कर रहे है। संस्थान में शोध मामग्रो प्रचुर मात्रा मे भरी पड़ी है। गस्थान सन् १६७२ ई० से मगध विश्वविद्यालय, बोध गया द्वारा मान्यता प्राप्त है। वर्तमान मे इसके मानद् निदेशक, डा. राजाराम जैन, अध्यक्ष, प्राकृत-मस्कृत विभाग, हरप्रमाद दास जैन कोलेज (मगध वि वि.) आरा हैं। इस समय सस्थान के महयोग से १५ शोधार्थी गोधकार्य कर रहे है तथा अनेक पी एच, डी की उपाधियां प्राप्त कर चुके है।
इम मग्था द्वारा अबतक अनेक गहत्वपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। इस मस्या के हस्तलिखित ग्रन्यो के मूनीकरण कार्य में यह दूसरा उपहार 'जन सिद्वान्त भवन ग्रथावली, का हिनीय भाग है। इसमे सम्कृत, प्राकृत, यपत्र स एव हिन्दी भाषाओ के १०२३ ग्रयो की विवरणात्मक सूची प्रकाशित है। ग्रय को प्रथम भाग की तन्ह दो खडो मे विभक्त किया गया है। प्रथम पड मे पाण्डुलिपियो का विवरण रोमन लिपि में दिया गया है। दूसरे पण्ड गे परिशिष्ट शीर्षक मे ग्रन्यो के प्रारम्भिक अग, अन्तिम अश तथा प्रशस्तियाँ दी गई है। गूनी मे आधुनिक पद्धति से ग्रन्यो का विवरण व्यवस्थिन किया गया है। विवरण निम्न ग्यारह शीगंको में प्रस्तुत है
(१) क्रम संख्या। (२) ग्रन्थ मरया। (३) गन्य का नाम । (४) लेखक का का नाम । (५) टीकाकार का नाम । () कागज या तादान। (७) लिपि और भापा । (-) आकर मेमो -मे, पत्रसरया, प्रत्येक पत्र की पक्ति सख्या एग प्रत्येक पक्ति की अमर सरहा। '६) पूर्ण-अपूण । (१०) स्थिति तया समय (११: विशप जानकारी यदि कोई हैं।
ग्रन्यावली को मामान्य रूप मे विषय वार निम्नलियित शीर्पको के अन्तर्गत विभक किया गया है
(१) पुराण-चरित-कथा। (२) धर्म दर्गन-आचार । (३) रस छन्द, अल कार काव्य, । (४) मत्र-क्रमकाण्ड, । (५) आयुर्वेद । (६) स्तोत्र, (७) पूजा-पाठ विधान ।
अनेक ऐसे भी गन्य है, जिनका विपय निर्धारण विना आद्योपान्त अध्ययन के सम्भव नही हो सकता है, उन ग्रन्थो को भी इन्ही शीर्षको क' अन्तर्गत व्यवस्थित किया गया है।