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ने भवन की उन्नति हेतु कलकत्ता और बनारस मे बडे पैमाने पर जैन प्रदशिनियो और सभाओ का आयोजन किया। भवन के वैभव सम्पन्न सग्रह को देखकर डा० हर्मन जैकोबी, श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि जगत् प्रसिद्ध विद्वान प्रभावित हुए तथा उन्होने बाबू देवकुमार की स्मृति मे प्रशस्तियाँ लिखी एव भवन की सुरक्षा एव समृद्धि की प्रेरणाएं दी।
सन् १९१६ मे स्व० वाबू देवकुमार जी के पुत्र वावू निर्मलकुमार जी भवन के मत्री निर्वाचित हुए। मत्री पद का भार ग्रहण करते ही निर्मलकुमार जी ने भवन के कार्यकलापो मे गति भर दी। १९२४ मई मे जैन सिद्धात भवन के लिए स्वतन्त्र भवन का निर्माण कार्य आरम्भ करके एक वर्ष में भव्य एव विशाल भवन तैयार करा दिया । तत्पश्चात् धार्मिक अनुष्ठान के साथ सन् १९२६ मे श्रुतपञ्चमी पर्व के दिन श्री जैन सिद्धात भवन ग्रन्थागार को नये भवन में प्रतिष्ठापित कर दिया। उन्होने अपने कार्यकाल मे ग्रन्थागार मे प्रचुर मात्रा में हस्तलिखित तथा मुद्रित ग्रथो का सगह किया।
जैन सिद्धात भवन आरा मे प्राचीन ग्रथो की प्रतिलिपि करने के लिए लेखक ( प्रतिलिपिकार ) रहते थे, जो अनुपलब्ध ग्रन्थो को बाहर के ग्रन्थागारो से मगाकर प्रतिलिपि करते थे तथा अपने सग्रह मे रखते थे। यहां नये ग्रन्थो की प्रतिलिपि के अतिरिक्त अपने संग्रह के जीर्ण-शीर्ण ग्रन्थो की प्रतिलिपि का भी कार्य होता था। इसका पुष्ट प्रमाण ग्रन्थो मे प्राप्त प्रशस्तियां हैं। जैन सिद्धान्त भवन, आरा से अनेक ग्रन्थ प्रतिलिपि कराकर सरस्वती भवन बम्बई एव इन्दौर भेजे गये हैं ।
सन् १९४६ मे वाबू निर्मलकुमार जैन के लघुभ्राता चक्रेश्वरकुमार जैन भवन के मत्री चुने गये। ग्यारह वर्षों तक उन्होने पूरे मनोयोग से भवन की सेवा की। पश्चात् सन् १९५७ से वाबू सुबोधकुमार जैन को मत्री पद का भार दिया गया. जिसे वे अभी तक पूरी लगन एव जिम्मेदारी के साथ निर्वाह रहे हैं। बाबू सुवोधकुमार जैन, भवन के चतुर्मुखी विकास के लिए दृढप्रतिज्ञ है। इनके कार्यकाल मे भवन के क्रिया-कलापो मे कई नये अाय जुड गये है, जिनसे बाबू सुबोधकुमार जैन का व्यक्तित्व एव कृतित्व दोनो उभर कर सामने आये है।
जैन सिद्धात भवन, आरा के अन्तर्गत जैन सिद्धात भास्कर एव जैना एण्टीक्वायरी शोध पत्रिका का प्रकाशन सन १९१३ से हो रहा है। पत्रिका द्वभाषयिक, हिन्दीअग्रेजी तथा पाण्मासिक है। पत्रिका मे जैनविद्या सम्बन्धी ऐतिहासिक एव पुरातात्विक सामग्री के अतिरिक्त अन्य अनेक विधाओ के लेख प्रकाशित होते है। शोध-पत्रिका अपनी उच्चकोटि की सामग्री के लिए देश-देशान्तर मे सुविख्यात है। इसके अक जून अर दिसम्बर में प्रकट होते है।