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________________ ७२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Colophon! इति अक्षर बत्तीमी सम्पूर्णम् । १२२८. अक्षर बावनी Opening Closing ॐ सु अलष परब्रह्म को धरौ सदाचित ध्यान । जा प्रसाद निह मनुज होत सुकृत को थान ॥१॥ हरष होत प्रभू दरस तं लहत अनेक अनद । लक्ष्मी चद्र समान जस सुविध सीस सुखचद ।।४५४।। इति श्री अक्षर वावणी जी समाप्तम् । Colophon । १२९६. अन्यमत श्लोक Op ning : Closing अहिंमा सत्यमत्तेय त्यागो मै पुनवर्जनम् पञ्चस्वेतेषु धर्मेषु सर्वे धर्मा प्रतिष्ठिता ॥१॥ अनुदिते नभमा देवस्य महर्षयो माहषिभि जुहेया जनकस्य जतस्य सायण रक्षा भवतु शान्तिर्भवतु तुप्टिर्भवतु वृद्धिर्भवतु स्वस्तिर्भवतु श्रद्धाभवतु ..... ॥ नही है। Colophon १२३० अठाईरासा Opening : Closing : वरत अढाई जे कर ते पावै भवपार प्राणी । जवूद्वीप सुहावणो लष योजन विस्तार प्राणी ।।१।। मन वच काया जे पढे ते पावै भवपार । विनयकीरत सुबयू मनै जनम सम्न नमार प्राणी। इति श्री अढाई - साजी सम् । Ciloph in
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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