SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah, Closing : Colophon : सारस्वत्या प्रमादेन काव्य कुर्वन्ति पडिता । ततस्सैपा समाराध्या भक्त्या शास्त्रे सरस्वति ।। इत्या श्रीमद्गवन्मुखारविंदविनिर्गते श्रीगौतमपिपादपद्माराधकेन श्री जिनसेनाचार्येन विरचिते त्रिवर्णाचारे उपासकाध्ययनसारोद्वारे ग्रहिधर्मदेवपूजा निरूपणीयोनाम पचम पर्वः। १२२२. त्रिलोकसार Opening , Closing : त्रिभूवनमार अपार गुन गायक " " । श्री अरहत महत ॥१॥ सुखनाम निराकुलता का है। निराकुलता वीतराग भावनित हो है। तात परम वीतराग भावरूप शुद्धात्म रूप जनित परम आनद की प्राप्ति करहुँ। इति । देखे, जै०सि० भ० ग्र० I, ऋ० ४२७ । Colophon: १२२३ वचनिका Opening : Closing | वदो श्री वृपभादि जिनधर्मतीर्थकरतार । नमें जामपद इद्रसत शिवमारग सचिधार ॥१॥ हे करुणानिधान मेरी रक्षा करहु । तव भगवान कहते भये । है राम शोक न करि, तूचल देव हैक एक दिन वासुदेव सहित इन्द्र की नाई पृथ्वी का राज करि। जिनेश्वर का व्रत धरि । नहीं है। Colophon: Opening : १२२४. वैराग पचीसी रागादिक दोषन तज, वैरागी जो देव । मन वचसीसनवाय के,कीजै तिनकी सेव ।।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy