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________________ ve Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhrammśa & Hindi Manuscripts (Dharma-Darśana-Acara ) Closing Colophon : Opening Closing Colophon : Opening : Closing इस पाप का सरूप विचार कर के त्यागना जोग है । एही नौ पदारथ समान रूप कहा । विशेष निर्वर्त होय है |१|| इति श्री सातत्तत्व नव पदार्थ की चरचा सक्षेप मात्र जनाया है सो मपूर्णम् । शुभ भवतु । ११-२० सिद्धान्तसार + सीन जगनपति जिनको धर्मराज के नायक शिव सुखदायक है। इस पचगुरु को प्रणाम कर के आवै भवन उदधिको कथन सुनो भाषु अर्व ||१|| जे इह मध्य सुलोक विषै जिनराज के मंदिर है अघखण्डन । श्री निर्वाण सुभूमि जहाँ न समोक्ष गये करिकर्म विखण्डन । जेड सर्वत्रको अनजाणये सबको करि भूषित आनन । इय सायक देह मुझे करि जोरि करो सबकौ नित वदन | २५ || इति श्री सिद्धान्तसार दीपक महाग्रथे भट्टारक श्री सकलकीति प्रणीतानुसारेण नथमलकृत भाषाया मध्यलोक वर्णनोनाम समोध्यायाधिकार ॥१०॥ ११८३. सिंदूर- प्रकरण (सूक्तिमुक्तावली ) सोभित तप गजराज सीस सिदूर पूरव विवोध बनारस जोर कर सोरह में इक्यानवे रितु ग्रीष्म वैशाष । सोमवार एकादशी कर नक्षत्र मितपाप ॥३॥ नाम मुक्तिमुक्तावली द्वाविंशति अधिकार | शतमि लोक परवान सब इति ग्रथ विस्तार ॥४॥९
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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