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________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Sıddhant Bhavan, Arrah Colophon: इति श्री सिंदूरप्रकरण सुक्तिमुक्तावलीनाम अथ समाप्तम् । संवत् १८०३ वैशाख सुदी १४ वृहस्पतिवासरे लिखित यति लालचन्द पठनार्थ लाला गोवरधमदासजी। दि० जि. अ. २०, के अनुसार इसके लेखक सोमप्रभाचार्य है तथा टीकाकार हर्षकीति है । विशेष - ११८४. सिन्दूर-प्रकरण Opening : Closing : Colophon : सिंदूरप्रकरस्तपरि ... ... ' पार्श्वप्रभो.पातु वः । कि जात वहुभिः करोति हरिणी .... यानिर्भर्या ।। इति सिदूरप्रकरणम् मम्पूर्णम् । लिखितं पडित परमानन्देन मिति चैत्र कृष्णे पचम्या शुक्रवासरे रात्री श्री जिनचैत्यालये वत्सर १६२८ का। शुभ भूयात् ।। ___ देखें, जै० सि० भ० ० 1, ऋ० ५२६ । ११८५ सिंदूर प्रकरणं (सूक्तिमुक्तावली) Opening Closing Colophon: देखें, ऋ० ११६३॥ देखे, ऋ० ११८३। इति सिन्दूरप्रकरण सूक्तिमुक्तावलीनाम ग्रंथ सम्पूर्णम् । ११६६. शीलवत Opening : Closing • Colophen. समजुपीय चतुर - ... ... परनारिसौं ॥१॥ सीयल गुण कहणको ...... वैषाम । इति श्री सील कडषा समाप्तम् । ११८७० श्रावकाचार Opening • राजत केवलम्यान • - सहज सुभाय ।।१।।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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