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Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts ( Purāna, Carita, Katha)
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Colophon 1
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सत्र से इक्यानवे, पोष शुदी तिथ दूज ।
सुभ नक्षत्र पूरन करी, जिन पानी कू पूज ॥ जेनर सुर घर गावही, तथा सुन मन लाय । जिनवानी सरधा करें अन सिद्धगत जाय ॥ ६ ॥
इति अष्टद्रव्य सेती जिन पूजा करी समाप्तम् ।
११६३. पुण्य माहात्म्य
पूरव पुन्न कियो जिन सोय, तेरा वस्तु जु प्राप्त होय । मानुष जनम जुपार्श्व थाय, उत्तम कुल में उपजे आय ||१|| शक्र समान तपस्या करें, दुष्ट शादमीस तप करें,
इतने गुन निरमल जिस जोय, तासौ नमस्कार मम सोय ||८||
इति श्री पुण्य महात्तम समाप्तम् ।
११६४. सम्यक्त्व कौमुदी
परम पुरुष आनन्दमय चेतनरूप सुजान । नमी सिद्ध परत्मा जग परकासक भान ।
चद सुर पानी .... तब लग जैन प्रकाश ॥४६॥ इति श्री सम्यक्त्व कौमदी कथा सादा जोधराज गोदीका विरचिते उदितोदय भूप अर्हदास सवादिकसगं गमनचरनतनाम एकादश परिच्छेद । इति श्री सम्यक्त्व कौमदी सम्पूर्णम् । सवत् १८४६ वर्षे मिति ज्येष्ट सुदि ३ वार मगल श्रीपार्श्वचद्र सूरि गच्छे श्री १०८ श्री चंद्रभाण जी तत् शिष्य लिखत्त् ज्ञासिरदारमल्लेन श्री सफातपुर नगरमध्ये ।
देखे, जै० सि० भ० ग्र० ], ऋ० ११४ |
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