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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrab.
११५६. प्रवचनसार
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Closing : Colophon:
देखें-क्र० ११५८ । देखें-क्र० ११५८ । अनुपलब्ध ।
११६०. प्रवचनसार
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स्वय सिद्ध करतार कर निम करम सरम .. ... ' ' ... एक विध अजरअमर
- मूर्तिक पदार्थ को जान है अति चचल है अनतज्ञान की महिमा ते गिरा है अत्यन्त विकल है महामोह ... - । नही है।
Colophon :
११६१. प्रायश्चित्त ग्रन्थ
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जिनचन्द्र प्रणम्याहमकलकः समन्तत. । प्रायश्चित प्रवक्ष्यामि श्रावकाणा विशुद्धये ॥ प्रायश्चित य. करोत्येव देव जाते दोषे तत्प्रशात्यर्थमार्य: रास्ट्रस्यासी भूमिः यस्यात्यनोपि स्वस्ताचास्यावस्थित श तनोति ॥६॥ इति अकलकस्वामिनिरूपित प्रायश्चित्तग्रन्थ संपूर्णम् । देखें--ज. सि० भ० ग्र० 1, ऋ० ३२१ ।
Colophon:
११६२. पाप-पुण्य माहात्म्य ।
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वर्द्धमान जिनवर नमू, मन वच सीस नवाय । फुन गुरु गोतम को नमू , जात पातक जाय ॥१॥