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४५ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Minis:)
( Purana, Carita, Katha )
११३६. मिथ्यात्व खण्डन
Opening ।
Closing :
Colophen.
प्रम सुमरि अरहत को सिद्धन को धरिध्यान । परस्वता सोम नमाइक, वंदौ गुरु जु ग्यान ।। य अनूपम रच्यो यह है प्रथिनि फी मारिध । गरिमाथि नदेह भवि मधिक जसन मौ रापि ॥ पनि मिथ्यात्व पण्डन सम्पूर्णम् । शुभ सवत् १८७६ मीति पत्र मुदि। रविवासरे उपदेश ग्रह मपद्मसागर जी लिखित अनप्रापमा बाग नगर । श्रीरन्तु । इसके बाद एक पय भी दिया हुआ है। ऐयें, ज. मि० भ० प्र० 1, २० २८५ ।
निगेर--
११४०. मोक्ष मार्ग
Opening :
Closing :
मंगलमय मगलफरण वीतराग विज्ञान । नमो ताहि जाते मए धरहतादि गहान् ।। जैसे वादरे के भी हम्त पदादि अग होई । परन्तु जैसे मनु क्षेते मे न होहै। तैसे मिथ्या दृष्टिनि के भी व्यवहार रूप निसकितादि अग हो है, परन्तु जैसे निश्चय की सापेक्षा लिए सम्पर्क होइ तैसे न हो है । महीं है ।
Colophon:
११४१. मोक्षमार्ग पैडी
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Opening :
क ममे रूचित जो गुरु अठहै सुनमल्ल । मो तुम अदर चेतना वहै तु साटी अल्ल ॥१॥