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४३ Catalogue or Sanskrit, Praktit, Apabhramsa & Hindt Manuscripts
(Purāna, Carita, Katha )
Closing '
मुनि श्रावक के भेदत, धरमदोथ परकार । साको सुनि चिन्तो सतत, गहि पावो भवपार ॥
Colophon
इति स्वामि कार्तिकेय अनुप्रेक्षा समाप्तम् मिति चैत सुदि ७ मवत् १९३० वार मगल । इति श्री
११३४० लघुतत्त्वार्थसूत्र
Opening.
Closing :
दृष्ट येन चराचर केवलज्ञान चक्षुषा। प्रणमामि महावीरे वदे काता प्रवक्षते ॥१॥ त्रिविधो मोक्षमार्गहेतवा।।१३। पचविनिग्रंथा. ॥१४॥ त्रिविधा सिद्धा १५॥ द्वादशसिद्धस्यानुयोगनामानि ।।१६।। अष्टोरे सिद्धपुणाः ।।१७। द्विविधा सिद्धा. ॥१८॥ वैराग्य चेति ॥१६॥
Colophon विशे
इति लघुतत्वार्य सम्पूर्णम् । इसके पहले हेत्र में ही लिखा है कि भब 'अर्हत्प्रवचन' कहेगे। अतः इसका नाम भी वही होना चाहिए। देखें-० सि० भ० प्र०, I, क्र० २८० ।
११३५. लघुसामायिक
Opening '
शुद्धज्ञानप्रकाशाय लोकालोकभावने । नम श्रीषद्ध मानाय वर्द्धमानमिनेसिने ॥१॥
Closing :
एवं सामायिक सम्यक् सामायिक खडित ॥ वर्तनामुक्तिमानम्य कस्य पूर्णयसेमना ॥१४॥ इति श्री लघु सामायिक सम्पूर्णम् ।
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Colophon .