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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devkumar Jain Oriental library Jain Siddhant Bhavan, Arrah,
Colophon :
ध्यान पदस्थ जु नाम फहयो मुनीराज ने। जे या मै हु लीन लहै निज काज में ॥१॥ इति श्री शुभचन्द्राचार्य विरचित योगप्रदीपाधिकार ज्ञानार्णवनाम सस्कृत ग्रन्थ की देश भाषामय वनिका विष पदस्थध्यान का प्रकरण समाप्त भया। श्रीरस्तु ।
११३१. कर्मप्रकृति ग्रथ
Opening :
Closing .
पणमिय सिरसा मि गुणरयणविहमण महावीर सम्मत्तरय गणिलय पयडिसमुकित्तण वोच्छ ८६ ॥१॥ पाणवधादीसु रदो जिण पूयामुम्ब मग्गविग्धयरो। - अज्जेइ अतराय ण लहइ ज इच्छिय जेण ।। इति श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेव विरचितायो कर्मप्रकृतिप्रथः समाप्तः । देखे, जि० र० को०, पृ० ७२,
Colophon.
११३२. कर्म-बतीसी
Opening : पर्म निरजन परम गुरु परम पुरुष परधान ।
___ वन्दो परम समाधिमय भयभंजन भगवान ॥१॥ Closing : यह परमारथ पथ गुन, अगम अनरी वषग्न ।
कहन बनारसी दास इम जथा सकत परवान ॥३२॥ Colophon. इति ध्यान वतीसो संपूर्णम् ।
११३३. कार्तिकेयानुप्रेक्षा
Opening i
तिहुवतिलयं देव वंदित्ता तिहुणिदपरिपुजम् । वोच्छ अणुवेहासों भविय जणाणेदजणणीओ।।