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Catalogue of Sa iskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts
( Purana, Carita, Katha )
११२७. जिनमहिमा
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Closing :
श्री जिनवर नाम की महिमा अगम अपार । धरि प्रतीति जे जपत, ते सफल करत अवतार ।। अद्भुत अतिसं तुम धरे वीतराग निज लीन । पूजक सहजै उच्च निदक सहज हीन ॥७॥ इति जिनमहिमा सपूर्ण।
Colophon.
११२८. जीवराशि क्षमावाणी
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Closing : Colophon :
हिवराणी पद्मावती जीवराश षिमा ...।
...... - जे मैं नीक विराधिया ।। रामवयराडी जे सुन ....• तत्तकाल ॥३२॥ इति जीवराशि सिक्षावाणी समाप्तम् ।
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११२९. णनपचीसी सुरनरतिर्यग्योनि में निरहै निगोदिभवत । महामोह को नीद में सोए काल अनत ।।१।। कहे उपदेश वाणारसी चेतन अब कछु चेति । आप समझाव आप कू जप कर्म के हेति ।२।। इति श्री ज्ञान पचीसीसपूर्णम् ।
Closing :
Colophon:
११३०. ज्ञानार्णव-वचनिका
Opening :
Closing |
पिउस्य पदस्थ च रूपस्थ रूपवर्जितम् । चतुर्भाध्यानमाम्नात भव्यराजीवभास्कर. ॥१॥ अमर पदकू अर्थ रूप ले ध्यान में, में ध्यावै उम.मत्र रूप एकता नम,