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________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन अन्यावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhint Bhavani, Arrah. Closing ! ने नान के आठ अंग हैं मो धर्मात्मा जीवन करि धारवे योग्य है। Colophon: इति ग्यान के अष्टअग सम्पूर्णम् । Opering : ११२४. हणवन्त अणुप्रेक्षा सिद्धाणिजोय जीव वणस्सई कालू पुग्गभाच्चैव । सवमलोगाग्गास छच्चेव अणतया भणिया ।। इयचारियाइ सुणेवि - ... - ... ... .... ... ... - राहवेण सइत्तुमडालेहि ॥ इति हणवत अणुप्रेक्षा. समाप्तम् । पडित बछराजू लिखितम् । Closing : Colophon: ११२५. जिन गायत्री त्रिकाल संध्या Openiag ! Closing : अोंच्यते त्रिवर्णानां शौंचाचारविधिक्रम । प्रातरेव समुत्थाय स्मृत्वास्तुत्वा जिनैश्वरम् ।।१॥ - संघोपासन ॥६चेति सप्तकर्मणि क्रमण कुयादिक नितदाह नमो है। भगवा समार मागरनिगानानाय अर्ह जलन्निगंधामि स्वाहा ।।। ह्रीं ह्रीं । ११२६ जिनगुणसम्पति . Opening ! Closing संस्तुवे सर्वदा देव गोपैशां गोपति परम् । दर्शनादप्पन पश्यन् त्रैलोक्य द्विगुणायते ।।१।। इति व्रतमहिमान विदितपुराण मकिलिप्य भो विवृधजना । कुरूत सलील ब्रतमतिरम्य शिवसौख्य यदि प्राप्नुमनाः ॥७॥ इति जिनगुणसम्पत्ति विधाम समाप्त, । श्रीरस्तु कल्याणमस्तु । शुभमस्तु । Colophon
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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