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________________ Catalogue or Snskrtt, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts (Purana, Carnta, Katha) Closing, भाले संस्थाप्पवध्यो मम दुरितहर कीतिय. शश्वद्यम्, निदादूर सदाप्त क्षयरहितममुज्ञानभानु जिनेन्द्रम् ।। पापिष्ठेन दुरात्मना जडविया मायाभिनालोभिना, रागद्वेषमलीमशेषमनसादु खकर्मय निभितम् । त्रलोभ्याधिपते गिनेद्रभगवत् श्रीपामूलेंधुना, निदादूरमह जजामि सतत निर्वतये कर्मणाम् ।। 'इति ईर्यापथ सम्पूर्णम् । Colophon : ११२१. गतिलक्षण Opening : Closing : Colophon: Opening : Closing | स्वर्गच्युत्तानामीहजीवलोके चत्वारिनिस्वमुदय वमति । दानप्रसंगो मधुरा चे वागी देवार्चन सद्गुरु सेवन च ।। बह्वाशी नैव सतुष्टो, मायालुप्तप्रपचकः । मूढस्य पलालशचव तिर्थग्योम्या गतीनर. ॥ ति गतिलक्षण समाप्तम् । ११२२. गोम्मटसार वंदी ज्ञानानंदकर नेमिचंद गुनकद । माधव बंदित विमलपद पुण्य पतोनिधिनंद ॥१॥ अपर्याप्त में मिश्रगुणस्थान नाही तातै कृष्ण लश्या का मिश्र धुणस्था विष देव विना तीन पति है स्यादिक यथा संभव मर्म जानियंत्रनिकरि कहिए है, अर्थ सोजानना · .. । इति आचार्य गोम्मटसार द्वितीयनान पचमग्रह ग्रन्थ की जीवतत्व प्रदीप का नाम संस्कृत टीका के अनुसारि सम्वग्ज्ञान पद्रिका नामा भाषा टीका •• - १ देखे, ज. सि. भ. प. I o २४४ ॥ .११२३ ग्यान के आठ अग विजन अथसममह । - । वसुअगये ।। Tolophon: Opening:
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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