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Catalogue of Sanskrit. Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts (Purana, Carita, Katha)
११०७. धर्मपरोक्षा
पणम्' अरहत देवगुरु निरगथ दयाधरम | भवदधितारन अवर सकल मिथ्यात मणि ॥
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भनत गुनत यह भारि अहनिमि होइ आनन्द । धरममुण्यात उपजे या परमानंद ||७५ ||
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इति श्री धर्मरक्षा भाषा मनोहरकृत सम्पूर्णम् । शुभ सवत् १८७१ । शाके १७१६ पौष शुक्ल नवमी भृगुवासरे । पुस्तकमिद सम्पूर्ण मेति । लेखकाक्षर रघुनाथ पाण्डेय पट्टनपुर मध्ये गायघाट स्थाने |
११०८० धर्मरत्न
मंगल लोकोत्तम नमो श्री जिन सिद्ध महत | साधु केवली कथितवर धरम पारण जयवत ||१||
केवल गुरु के अवगाढ केवलि प्रभु के परम अवगाढ । आत्मानुशासन के माहि, इति दस भेद सुकथन कराही ॥
नही है ।
११०६. धर्मरत्न ग्रन्थ
देखे क्र० ११०६ ।
धर्मरत्न की ज्योति फैलो चहु दिस
जग तम शिव मारण उद्योत जयवतो बर्ती सदा ॥
नही है ।