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Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manucripts
(Purāna Carita, Katha )
११०१. देवागम
Opening :
Closing : Colophon :
दोहा :
देवागमभोयान चामरादिविभूतय । मायाविष्वपि दृश्यने नातस्त्वमसि नो महान् ।।१। जयति जगति · · ... समुपासते ॥ इति श्री समतमद्रपरमाहताचार्यविरचिन देवागमसूत्र सपूर्णम् । श्री देवागम अय को पौष कृष्ण नव जान । ... .. .. एक परमान ॥१॥ लिपिपूरन पुस्तक कियो शुभमुहुर्त शनिवार, हरिदाम सुत अजित को आरा देम मझार ।।२।। सो जयवतो नित रहो जब लग सूरजचद, यह जिन सासन त्रिजग हित पूरन सिव सुखकद ॥३॥ शुभ भूयात् । शुभम् । देखें, जै० सि० भ० ० 1, ० ४५४ ।
११०२. दिगम्बरआम्नाय
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Closing
श्री भद्रबाहु स्वामी पोछे दिगम्बर मप्रदाय में केतेक वर्ष अगनि के पाठी रहे। मंप्रदाय में जथावत आचार का तो अभाव ही है जो कही होय तो दूर क्षेत्र मे होयगा, परन्तु मोक्षमार्म की प्ररूपणा तो अपनी क महात्म ते वत है। इति दिगम्बर आम्नाय ।
Colophon:
११०३. धर्मग्रंथ
Opening •
मंगल लोकोत्तम नमों श्री जिन मिट्टै महत । साधु केवली कथित वर धरम सरण जयवत ।।