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________________ ३२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah, ज्झयण अथान श्लोक १२१६ सवत् १७३५ प्रथम ज्येष्ठमासे कृष्णपक्ष मौम्यवारे सप्तमीकर्मवाह्या श्रीमत् वृहत् खरतरगच्छा तुच्छ युगप्रवरपदधर भट्टारक १०४ श्रीजिनचद्रसूरिणादाना शिष्येण विनयवता क्षमासमुद्रण कल्पसूत्रप्रतिलिखति स्म श्रीराज देंगे श्री। १०६८. दोनवावनी Opening : Closing , वंदो अरि जिनद व्रत तीरथ परगारयो । णमो श्रेयस नरिंद दान तीरथ अभ्यास्यो ।। रतनत्र आभरन विराज वीरनद गुरु गुन समुदाय । तिनके चरन कमल जुग सुमिरत भयो प्रभावज्ञान अधिकाय । सव श्री पद्मनंदने कान दान प्रकाश काव्य सुम्वदाय । पानंद बनाइ दानवावनी द्यानत राय ।। इति श्री दानवावनी सम्पूर्णम् । Colophon: १०६६. दोनवावनी Opening : Closing Colophon: देखें, ऋ० १०६ । देखे, ऋ० १०६८। इति श्री दानवावनी सम्पूर्ण । ११००. दी-शील-भावना Opening : Closing | प्रथम जीनेसर पाय नमी यामी सुगुरु पसाय । दान शील तप भावना बोली सुबहु संवाद ॥१॥ दान शील तप भावना रचौं संवाद भणता गुणता भावसुरे । गैद्धि समृद्धि सुप्रसादोरे धर्म हीयैधरी ॥१॥ इति श्री दाम शीतप भक्निा सम्पूर्ण । Colcphon:
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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