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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली shri Devakumar Jain Quental Library. Jain Siddhant Bhavan, Arrah.
१०६५. सुगंधदशमी-कथा
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श्री जिन शारद मन मैं धरु सद गुरु नै नित वंदन करू । साधु सत पद वदो सदा, कथा बहू दशमीनी मुदा ||१|| ए व्रत जे नर नारी कर, से भवसागर वेग गरे । छाडे पाप सकल सुख भरे, वह्मज्ञानसागर उच्चरै ।। इति सुगध दशमी कथा।
देखे, जै० सि० भ० प्र० I, ऋ० १४५॥
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१०६६. सुगंधदशमी कथा
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सुगंध दशमी व्रत सुनि कथा, वर्तमान प्रकाशी यथा । पूरव देश राजग्रह नाम, श्रेणिक राज करे अभिराम ।।१।। हेमराज वीयन यो कही विश्व भूषण प्रकाशी सही । मनवचकाय सुनै जो कोई, सो नर स्वर्ग अपर पति होई ॥३all इति सुगंधदशमी कथा समाप्ता।
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१०६७. सुगधदशमी-कथा
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१०६५ देखे, ऋ० १०६५। इति श्री सुगंधदशमी कथा जी समाप्तम् ।
१०६६ सुगंधदशमी-कथा
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देखे, ऋ० १०६५। देखे, के ० १०६५। इति श्री सुरोध दशमी कथा ममाप्तम् ।