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________________ Catalogue of Sanskrtt, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts (Purāna, Carita, Kathā ) इति षोडशकारण कथा संपूर्णम् । Colophon Opening Closing Colophon १०६२. श्रावणद्वादशीकथा प्रथम नमू श्री जिनवर पाय, प्रणम् गणधर सारद माय । सद् गुरु पद पंकज मन धरु, सार कथा वारसनी करू ||१|| रोग सोग सत्तापह टल, मनवाछित फल पूरण मिलें। श्री भूषण सुत दाए लहै, ब्रह्मज्ञानमागर हम कहे ॥ इति श्रवणद्वादशी कथा । 7 १०६३. श्रीपाल चरित्र Opening : प्रणम्यं सिद्धचक्र च सद्गुरु निजमानसे श्रीपालचरित वक्ष्ये सुगम शिप्यहेतवे ॥ Closing जीवराजेन रचित श्रीपाल चरित शुभम् । प्रीतसुन्दरेनाशुलिखित श्री सद्गुरुप्रसादत ॥ Opening Closing Colophon · इति श्रीपाल वे गद्यवद्य चतुर्थं प्रस्तावः । शुभं भूयात् । स० १६०५ रा०मि० आसोज शुक्ल त्रयोदशी दिवसे मंगलवारे लिपी वृते ऽतिः श्री विक्रमपुर मध्ये चउकमासीस्थिता । १०६४ श्रीपाल चरित्र श्री अरिहत अनंतगुण, घरीय हिय मे ध्यान केवल ग्यान प्रकाश कर दूर हरण अग्यान 11911 कहै जिने हरष भविक नर सुण ज्यो नवपद महिमा थुणिज्यो रे । गुण पंचासे ढाले गुणि ज्यो निज पति कठिण लुणिज्यो रे ॥ Colophon • इति श्रीपाल महाराजा चौपई समाप्तम् ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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