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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan,Arrah.
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पढने से ऐसा लगता है कि पहले कथा वगैरह लिखने के बाद पद
लिखने की परिपाटी हो
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देखें, जै० सि० भ० प्र०I, ऋ०१२८ ।
१०५८. शीलवतीकथा
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ततोऽनर्थमूल त विप्र शीलवती
जीवितादधिकत्वेन पालितो नियमोsपुनर्भवाय भवेत् ।
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१०६०. सोलहकारणकथा
देखे, क्र० १०५६ ।
देखे, क्र० १०५६ |
इति सोलहकारण कथा सपूर्णम् ।
इति शीलवती कथा सपूर्णम् ।
१०५६. सोलहकारणकथा
श्री जिन चौविसी नमू, सारद प्रगति अधनिंगमू । निज गुरु केरा प्रणमू पाय, सकल सत प्रणमी मुखयाय |१|
१०६०. शोडश कारणकया
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सत्कृत्य बहुमानास्पद
कृतवान ।
या सकल भोग सयोग, टर्न आपदा रोग विरोध । श्री. भूषण गुरु पद आधार, ब्रह्मज्ञानमागर कहै सार | ३६ | इति श्री सोलहकारण कथा समाप्तम् ।
देखें, क्र० १०५६ ।
देखें ऋ० १०५६
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