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१०८६. रोहिणी - कथा
वायुज्य जिनगन भयदधि तर जिहाज नम मध्य हे सूत्र माज नाम ने पाकि हरे ॥ रोहित
पाल जो कोई नर ना जमर पद हो ।
मन यच काय गृध जो घर कमने मुक्ति वधु मुख मरें ॥
इति रोहिनी कथा ममाप्नम् ।
१०५०० रोहिणी व्रत कथा
वासुपूज्य जिनराज की वदो मम वच काय | साप्रमाद भाषा करो सुनौ भक्ति चित लाइ ||