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________________ Catalogue of Sankrit, Prakrit, Apaphramsa & Hindi Manuscripts (Purana, Carita, Katha ) इति श्री आदित्यवार कथा जी समाप्तम् । Colophon : Opening: Closing . Colophone : Opening Closing Colophone : Opening : Closing, Colophon Opening १००६. आदित्यवार-कथा देखें १००५ । कमक्षय कारण इह मनि मई तत्र या धर्म्म कथा अरनई । मूर्ति धरि भावसु जो कोइ सो नर स्वर्ग देवता होई ॥ Closing : इति श्री पार्श्वनाथ गुण-महिमा युक्त रविवार व्रत कथा सपूर्णम् । १००७. आदित्यवार - कथा श्री सुखदायक पास जिनेस । प्रणमो भव्यपयोज दिनेस || यह व्रत जो नरनारी करें, सो वहु नहि दुरगति परं । भाव सहित सुरनरसुख लहै, बार बार जिन जी यो कहे ।। २५ इति श्री रविव्रत कथा समाप्ता । १००८. आदित्यवार - कथा देखें, क्र० १००७ । देखें, ऋ० १००७ । इति श्री रवि कथा जी लघु तमाप्तम् । 1 १००६. आदित्यवार - कथा 1 'प्रथमं सुमिरि जिन चौवीस, चौदह से त्रेपन जु मुनीस । सुमिरो सारद भक्ति-अनत, गुरु देवेन्द्र जु कीर्ति महत ||१|| रविव्रत तेज प्रताप भई लछिमी फिरी आई कृपा करि धरनेंद्र और पद्मावती माई .।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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