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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah.
जहाँ" "तहां रिद्धि सब छोर ज पाई मिले कुटुम परिवार भले सज्जन मन भाई।। पढे सुने जे प्रात उठि नरनारी जु सुवुद्धि, तिनको धरनेद्र पद्मावति देहि सर्वथा सिद्धि । इति श्री रविवार कथा सम्पूर्णम् ।
Colophoni
१०१०. आकाश-पचमी-कथा
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Closing :
'पडिवा प्रथम कला घट जागी, परम प्रतीत रीत रस पागी।
प्रतिपदा परम प्रीत उपावै, वह प्रतिपदा नाम कहावै ॥ .. काण्टासघ सरोज प्रकाश, श्री भूपण गुरु धर्म निवास ।
ताम शिष्य बोले चंग, ब्रह्म ज्ञानसागर मन रग ॥
-इति आकाश पचमी कथा - . १०११. आकाश-पंचमी-कथा
Colophon :
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श्री जिनसासन पय अनुसरू गणघर निज वदिन
यह । साध सत प्रणमू पाय, जे हथी कथा अनोपम थाय ॥१॥ देखें-ऋ० १०१०।। इति श्री आकाश पचमी व्रतकथा समाप्तम् ।
Closing : Colopi on
१०१२. भविप्यदत्त-कथा
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म्यामी चद्रप्रभु जिननाथ, नमोचरण निमस्तक हाद। नाटन पन्यो चद्रमा जागु माया लाल कि नगा १॥ पहा मंपूरन मई, मक्स भव्य को मगन म। पाने जो करे वघाण, सो पावे शियपुरि परमाण ।
Closing:
119१६॥