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Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhransha & Hindi Manuscripts
(Puję. Påtha-Vidhana )
Glosing । अनेन सिद्धार्थानभिम असर्वविघ्नोपशमनार्म सर्वदिक् क्षिपेत् । Colophon i इति श्री सकलीकरण विधानम् । शिशेष-अन्त में दिग्पाल एवं क्षेत्रपाल की अर्चना तेल, चंदन, गुण आदि से
करना लिखा है। अन्त मे छह यत्र-चित्र भी अकित है।
६३६, समवसरण पूजा
Opening :
Closing 1
प्रणमामि महावीर, पंचकल्याणनायकम् । केवलज्ञानसाम्राज्य लोकालोकप्रकाशकम् ॥१॥ श्रीमत्सर्वश
" । .. .. विवुधारस्नरचितम् ॥५॥ इति श्री समवसरण पूजा वृहत्पाठ सम्पूर्णम् । देखें-दि० जि प्र. र., पृ. १९५।
पृ.४१६
Colophon:
हातमा
Opening:
Closing:
९४०. समवश्रुति पूजा देखें • ६६६।
श्रीमत्सर्वशसेवा सन्दिसति मत ॥ १:-मृदुश्चर्य सुधाराशिः विवुधारनरजितम् ॥५॥
इति श्री समवश्रुतपूनावृहस्पीठ सपूर्णम् ॥ ९४१. सम्मेदशिखर माहात्म्य
Colophon:
Opening | पंच परमगुरु को नमो, दो कर शीश नवाया .
। श्री जिन भाषित भारती, ताको लागो पाय॥ Closing | - रेवाशहर मनोग, वसे-श्रावक भव्य सब।
• आदित्य आश्चर्ष-योग तृतीय पहर पूरणभयो । Colophon इति सम्मेद शिखर महात्म्ये लोहाचार्यानुसारेण भट्टारक श्री
जगत्कोति लालचद विरचिते सूवर कूट वर्णनो नाम एकविशमो सः । इति श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य जी सपूर्णम् । मिति चैत्र शुवल - रवीवार दस्तखत दुरगादास सवत् १९३७ साल । शुभमस्तु ।