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________________ २३५ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Stotra) Closing i तम्य नमो निखिललोकविलोकनाय, तुभ्य नमो परमार्थ गुणाप्टकाय । तुभ्य नमो वेनुगुलाधिसाधनाय, तुश्य नमोस्त विभवे जिन गुम्मटाय ।। नही है। ६६७ गुरुदेव की विनती Colophon Opening! Closing: जयवत दयावत सुगुरुदेय हमारें। समार विषमसार ते जिन भक्तानद्वारे ।।टेक।। इहलोक का सुख भोग सुरलोक मे जावे, नरलोक मे फिर आयक्त निर्वान को पावै ।। जयबत दयावत ॥३२॥ इति गुरावली सपूर्ण । Colophon ; ६६८. जिनचैत्य स्तव Opening: Closing. 'वदौं श्रीजिन जगतगुरु, उपदेशक शिवपथ । • सम श्रुतिशासन ते. उचू , जिन चैत्यस्तव ग्रन्थ ।। अठार मै के ऊपर, लग्यो वियासीसाल । गुरु कातिग वदि अण्टमी, पूरण कियौ सुकाल ।। इति श्रीजिनचैत्यस्तव ग्रन्थ दिवान चपाराम कृती समाप्ता शुभमस्तु । सवत् १८८३ मिति कार्तिक कृष्ण अष्टमी गुरुवार लिखतम्' खरगराय श्री वृदावन मध्ये लिखाइत श्री दिवान चपाराम जी । Colophon : ६६६. जिनदर्शननाष्टक Opening | Closing : . अद्याखिल कर्मजित मयाद्यमोक्षो न भूतो ननुभूतपूर्व । तीर्णोनवार्णोनिधिरद्यवोरो जिनेन्द्रपादाबुनदर्शनेन ।। अद्याप्टक निर्मितमुक्तसारः, - कोतिम्वनातरमन मुनीन्द्र।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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