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________________ २१४ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Closing : " · एव रक्तश्रयारी · · ·। ५९५. वयकसार संग्रह Opening ! सिद्धोषवानि पश्यानि रागढ परुजां जये। जयन्ति यद्वचाशत्र तीर्थकृच्छे स्तुव श्रिये ॥ Closing : पथायोग प्रदीपोऽस्ति पूर्वयोगा शत तथा । तथैवाय विजयता योगन्तिामणिश्चिरम् ।। नागपूरि यतयो गणराज श्रीहर्षकीति सकलिते । वैद्यकसारोद्धारे सप्तमोमिशकाध्याय.॥ Colophone इति श्रीमन्नागपुरि पतपातया गच्छाय श्रीहर्षकीर्ति सक लिते वैद्यकसारसग्रहे योगचिन्तामणी मिशकाध्यायः समाप्त । इति योगचिन्तामणि सपूर्ण । देखें, जि. र. को, पृ. ३६५ । ५९६. वैद्यकसार संग्रह Opening: यत्र चित्रा समयाति तेजासिजतमासिच मटीयस्तोदय वद चिदानदमयभह ॥१॥ Closing 1 नागपूरियतयो गणराज श्रीहर्षकीति सकलिते। वैदकसारोद्धारे सप्तमकोमिश्रकाध्याय ॥३०॥ Colophon: इति श्रीमन्नागपूरियतपायतपागछाय श्री हर्षकीति सकलिते बंद्य कसारसग्रहे जोगचितामणौ मिश्रकाध्याय समाप्तम् ॥ यादृश पुस्तक दृष्टा तादृश लिखत मया । यदिश्रुद्ध अशुद्ध वा मम दोषो न दियते ॥ मिति भाद्रवा शुक्ल १० भोमवासरेः सवत् १८५० साके १७१५ शुभ भूयात् कल्यागमस्तु ।। ५६७. वैद्य विधान Opening : महारस सिवुर विधि शुद्ध पान्द पडगुणोंक सुरभी जीणी तंद्र मयुरोस नवसरक मणिशिला पत्रामक टरुण वज़ क्षारकलाश
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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