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________________ २१२ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Ayurveda ) कैविमलित गधार्घभाग प्रमात् सर्वं बल्वतले विमद्यं ममल योगादि ऋक्षे शुभे कन्या भास्कर हस पादि मनल। Closing | स्यात्स्वेदन तदनुमर्दन मूउनेन, स्यादुत्थिता पतन रोद निया मनानि । सदीपन गगन भक्षण मानमात्रा सज्जारणा तदनुगर्भगता धृतिश्च ॥ पाह्या धृति सूतक जारणस्याद्रागस्तथा सारण कर्म पश्चात् । सत्रामणावेद विधिः शरीरा योग किलाण्टादश वेति फर्म ॥२॥ विशेष -वैसाख कृष्ण द्वितीयायां समाप्तश्च शाली घाहन शक् १८४८ ।। सन् १९२६ ईश्वी। ५६८. विद्याविनोदनम् Opening : प्रप्रणम्य जिन देव सर्वश दोपजितम् । सर्मवक्षीति चतुर दाराकल्पमकल्पकम् ॥ Closing व्याध्युजिकुठाररोगदण्ड णाति कूरदान भूवरूपम वावगाहमिदं भूपैरल सेव्यताम् ।। Colophon: इति श्रीमदर्हत्परमेश्पर चारु चरणारविन्द गन्धगुणानन्दित मानसाशेपकला शास्त्र प्रवीण परमागमत्रयवेदि प्राणापायागमान्तर समुदित वेद्य शास्त्राम्बुनिधिपारगम सर्व विद्यानन्द मानस श्रीमद्कलक्क स्वामि विरचित महावंद्यशास्त्र विद्याविनोदाख्ये अवगाहन लक्षण समाप्तम् ।। देखें, जि. र. को., पृ. ३५६ । ५९६. योगचिन्ता मणि Opening 1 यत्र वित्रासमायोति, तेजांसि च तमासि च । महीयस्तदह पदे, चिदानदमययहम् ।। यथायोगप्रदायोस्ति पूर्न योगसत यथा। सर्थवार्य विजयता योगश्चितामणिश्चिरम Closing
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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