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________________ २१२ श्री जैन सिद्धान्त भवन अन्थावली Skiri Devakumar Jain Oriental Library. Join Siddhant Bhavan, Arrrbi Colophon: वद्यनथ परिसमाप्तम् । ५६०. आरोग्य चिन्तामणि Opening! भारोग्य भवरोगपीडितनृणां यच्चितना ज्ञायते ते सग्र्गादिविधायिन सुरनुलं नत्वा शिव शाश्वतम् ॥ आयुर्वेदिमहोदधेलघुतर सर्वार्थद सुप्रभ वक्ष्येहं चरकादिसूक्तिनिचयरारोग्यचिंतामणिम् ॥ ॥ Closing | बालादिह प्रमाणेन पुष्यमाला सदीपकम् ।। प्रगृह्य मुष्टिका भक्त बलिई य सुमत्रिणा ।। ।। इति सूतिका वालरोगाध्याय; स्त्रिश' बालत्रमम् ॥ इति श्री भट्टारविष्णुसुतपडितदामोदरविरचितायांमारोग्यचितामगिसहितायामुत्तरस्थानं षष्ठ समाप्तम् ।। एवं ग्रयसंख्या शत ॥ १२०० ।। परिधावि संवत्शरद माघ शुक्लपक्ष १४ चतुर्दशीयु गुरुवारदल्लु । मूडविद्रे पन्ने च्यारि श्रीधरभट्टनुवरदशा आरोग्यचितामणिसहितेये मगलमहा | श्री वीतरागाय नमः॥ करकृतमपराध भतुमहति संतः ॥ विजयापुरीश्च भवनस्वर्गावलरोजिन' ॥ श्रीमन्मदुरमस्तैकाग्रसदनः श्रीमत्तपोधासन लोकालोक विभासि बोधनघनोलोकानसिंहासनः ॥ सधानक्यकमुह माणिकजिन 'पयातु पायात्मन॥ श्रीजिनार्पणमस्तु ॥ श्री शुभमस्तु । श्री वीतरागार्पणमस्तु," ॐ श्री वासुपूज्याय नमः॥ सिध्यदिनदलूवजेठ माडुवागल कदम प्रात: का लदलूमौंनदि पागि ॥ 'ॐ नमः औषधेभ्य उर्जावतोमतिषययवीर्य मकैकस्मिन् कुरुघ्वं पथ दह दहन धारय तुभ्य नमः काचीपुरवासिन । दिमत्रदिभत्रि सिमग दुत छायांशुष्क कमठ भाडि अजमूदिनस्य जग्ये सर्व ग्रहं ॥ देखें- जि० २० को, पृ० ३४ । Opening | ५६१. कल्याण कारक, किरीकोटि-माणिक्यरश्मि निकराचिन पादपीठा तीर्थादिपूजितवपुर्वृषभो. वभूव साक्षादकारणजग- । त्रितयकवन्धुः॥१॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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