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________________ २११ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts ( Mantra, Karmakinda) ५८६. सोलह चाली Opening | श्री जिन नमि फुनि गुरु को नमो, मन धरि अधिक सनेह । सोलह चाली मन की रची सुविधि कर एह ।।। Closing ! ..... - और जो एक घटाईये तो एक-एक घटाइ लिप ८ के अक तही। Colophong ! इति श्री १६ चाली पूर्णम् । ५८७. विवाह विधि Opening : स्वस्ति श्री कारक नत्वा वर्धमान जिनेश्वरम् । गौतमादि गणाधीश वाग्देव विशेषतः । Closing : ... ... विपुल नीलोत्पलाल कृत स्वस्येकोचन, भूषितरूपचितः विद्य प्रमा भासुरै । Colophoni Missing. ५८८. यन्त्रमंत्र संग्रह Opening: Closing : यस्तु कोटिमहागि मन्त्रतत्राण्य गोकवान् । तस्मै सर्वज्ञदेवाय देवदेवात्मने नम ॥ अपुष्टधर्माणा च न दातव्य इद दृश्वा यदि कदाचिद्ददाति तदा महापातक प्रयुक्तो भवति एवं पचनमस्कारचक्र नानाक्रियासाधन स • • • यसार समाप्तमिति । समाप्तमभूत् । ५८६, अलंक संहिता (सारसंग्रह) Colophon: Opening ! श्री मच्चातुनिकायामरखचरवर नृत्यमगीतकोतिम् व्याप्ता ......""शाल सुरपटहादि सत्प्रतिहार्यम् । नत्वा श्री वीरनाथ भुवि सकलजनारोग्यसिद्धय समस्तै रायुर्वेदोक्तसारैरिहममल(१) महासग्रह सलिखामि ॥ Closing ! नालिगेय दोष २० वगेय प्रमेह प्रदर चैत्य कामाले पाडु सह सह परिहर । इच्छा पथ्य ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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