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१८५ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts
(Rasa, Chanda, Alankara & Kavya)
५०६. फुटकर कवित्त
Opening:
भी (भव) जल माहि भरयो चिर जीव सदीव
अतीत भवस्थिति गाठी। राग विरोध विमोह उदै बसु कर्मप्रकृति लगि
अति गाठी ॥ ... ...२ अस्पष्ट ।
Closing ! Colophon:
इति कवित्तानि ।
५१०: फुटकर कवित्त
Opening :
Closing |
Colophon :
देखे, क्र० ५०६ । कहू लताह फूल्यो कहू फूलह फूल्यो कहू, भौरह भूल्यो कहूँ रूप कहू दिष्ट है। सफल निवासी अविनाशी सर्वभूतवासी, गुप्त प्रकासी आप सिण्ट आप मिप्ट हैं। इति श्री तिलोकचदकृत फुटकर कवित्त सम्पूर्णम् ।
सवत् द्वादशषष्टहै, अवर असी परमानि । माघशुक्ल द्वितीण तिथी, बार चद्र शुभ जानि ॥१॥ अच्छेलाल आरे वस, लिखवायो जिन गथ । नदलाल लेखक सही, समीचीन यह पथ ॥२॥ गगातट छपरा नगर देवलत गज सुधाम । सहा निखि पूरन कियो, सु दर रचि विश्राम ॥३॥
५११. नीतिवाक्यामृत
Opening
सोम सोमसमाकार, सोमाभ सोमसंभवम् । सोमदेवमुनि नत्वा, नीतिवाक्यामृत अवे ।।