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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jarn Oriental Library, Jain Siddhant Bhavuan, Arrah
५०५. चन्द्रोन्मीलन
Opening
Closing :
चद्रप्रभ नमस्कृत्य चद्राभ चद्रलाच्छनम् ।। चद्रोन्मीलनक वक्ष्ये, सकलाद्यं चराचरम् । यत्तु लभ्यते तत्तत्सवत्सर आदित्य वद्वितप्रश्ना
दित्य लभ्यते। चद्रवद्वितप्रश्ना चद्र लभ्यते, क्षितिजद्वित प्रश्ना भौम लभ्यते ॥ इति चद्रोन्मीलन समाप्त ।
देखे--जि० र० को० पृ०, १२१
Colophone
५०६. चन्द्रोन्मीलन Opening : देखे, ऋ० ५०५ । Closing
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एव चन्द्रमा से चन्द्रलोक की प्राप्ति और भौम
एव च से भौम लोक की प्राप्ति कहना चाहिए। Colophon: इति चन्द्रोन्मीलन समाप्तम् । शुभ भवतु । शुममिति फाल्गुन शुक्ला ५ स० १९६० ।
देखे-जि० र० को०, पृ० १२१ ।
५०७. चन्द्रोन्मीलन
Opening :
Closing : Colophon.
देखें, ऋ० ५०५ । देखें, ऋ० ५०६।
इति चन्द्रोन्मीलन समाप्तम् ।
Opening :
५०८. दोहावली
जिनके वचन विनोद ते प्रगटे शिवपुर राह। ते जिनेन्द्र मगल करो नितप्रति नयो उछाह ॥१॥ सो सम्यक्त्त सहित वने व्रत सयम सम्बन्ध ।
तो उपमा सांची फवे सोना और सुगन्ध ।। मही है।
Olosing ,
Colophon