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________________ १०६ Hindi Manuscripto Catalogue of Sanskrit, Pralkrit, Apnbhransha & ( Dhnima, Darsana, Acira) (olophon: ति धी मूलाचारप्रदीपकाग्ये महारथे भट्टारक श्री सकल फोतिविनोअनुया पनयमादियणंनोनाम द्वादामोधिकारः । लिग्गन दयानन्द यह पानी जनगर का हालवासी जैसिघपुरामध्ये । मिनि पंजाब पुलिपतियो चनुरथ्या रविवासरे सवत् १८७४ का। वाचकाना नेयपाना शुभ गया। २६५. नवरत्न परीक्षा Opening : नायाय भवनप्रयपदिताय सत्वा नम समवलोक्य च रत्नशास्त्रम् । रत्नप्रारमधियत्य विमुन्य फरगुन् नक्षेपमान मिति बुद्ध पटेन दृष्टम् ॥१॥ मुदनश्तियाजातप्रकापीमतविक्रमः । यनो नामावच्च्छीमान्दानवेंद्रो महावरा ॥२॥ Closing I तपपुगहनूनुना गमामोगिन । मणिशास्त्र मस्ता बुद्धभट क्षयेणेयमिति वज़मौक्ति पराग मरकतेंद्र नीलवर्यकर्केतन पुलक रुधिराप म्फटिक विद्रमाणा। वीजाकर गुणदोष कृतिममूल्य परीक्षा धारयितुम् । दोपगुगानाम् हानियोग च विस्तारेऽनौमुद्धभटेन निर्दिष्ट । Colophon . ति युद्ध मट्टनाम रत्नगारत समाप्तम् ।। मद्र भूयादिति स्तोमि अयमपि गन्थ रान्० नेमिराजास्येन लिखित ॥ माघशुक्ल चर्दया समाप्तश्च ताक्षि मवत्सर । विस्तशक १९२५-फेबुअरी।। मूडयिती ॥ २६६. नयचक्र सटोक Opening | वदो श्री जिनके वचन, स्याद्वाद नयमूल । ___ ताहि सुनत अनभवतही, ह मिथ्यात निरमूल ॥ Closing: तसो ही कहनी सोइ अनुपचरित असद्भूत विवहार कहिये । जैसे जीवको शरीर ऐसी कहणी। Colophont इति पडित नारायणदासोप् शेन यह हेमराजकृत नयचक्र की सामान्य वचनिका समाप्तम् । श्री मिती पीप सुदी ११ सवत् १६५६ । हस्ताक्षर बलदेव प्रसाद।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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