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________________ १०८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Labrary Jein. Siddhant Bhavan, Arrah २९१. मृत्युमहोत्सववचनिका Opening : कृमिजालशताकीर्णे, जर्जरे देहपजरे । भज्यमानेन भेतव्य यस्त्व ज्ञानविग्रहः ।। Closing : देखे, क्र० २६० । Colophon: इति श्री मृत्युमहोत्सव वचनिका सम्पूर्णम् । विशेग-अन्तमे अभिषेक पाठ भी लिखाहुआ है, जो अपूर्ण है । २६२. मूलाचार Opening : मूलगुणे सुविसुद्ध वदित्ता सव्वसजदे शिरसा । इह परलोगहिदत्थे मूलगुणे कित्तइस्सामि ।। Closing: • ... सकललोकालोकस्वभाव श्रीमत्परमेश्वरजिनपतिमतवितत मतिचिदचित्स्वावचिद्भावसाधितस्वभाव परमाराध्यतम. सैद्धान्तपारावार पारीणाय आचार्य श्री कुन्दकुन्दाचार्याय नम । Colophon इति समाप्तोऽय ग्रथ.। Opening : Closing : Colophon: २६३. मूलाचार प्रदीप श्रीमत मुक्ति भार, वृषभ वृषनायकम् । धर्मतीर्थकर ज्येष्ठ, वदेनतगुणार्णवम् ।। पचषष्ठ्याधिका', श्लोका त्रयस्त्रिशशतप्रमा । अस्याचारसुशास्त्रस्य ज्ञ या पिंडीकृर्ता बुध ॥ नहीं है। देखें--(१) दि० जि० प्र० २०, पृ० ५६ । (२) जि० २० को०, पृ० २५ । (३) आ० सू०, पृ० ११३, २०११ (४) रा० सू०, पृ० १६५ । (५) Catg. of Skt.& pkt. Ms. P.681. २६४. मूलाचार प्रदीप देखे, क्र. २६३ । देखे, ऋ० २६३ । 'Opening : Closing :
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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