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________________ ११० श्री जैन सिद्वान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain 8 ddhant Bhavan, Arra २६७. नीतिसार ( समयभूषण ) Opening प्रणम्यन्त्रिजगन्नाथानिन्द्रा नन्दितसम्यद । अनागाराम्प्रवक्ष्यामि नीतिसारसमुच्चयम् ।।१।। Closing : माघत्प्रात्यर्थिवादिद्विरद घटिघटाटोपवेगपावनोदे । वाणी यस्याभिरामामृगपतिपदवी गाहते देवमान्या । श्रीमानिन्द्रनन्दी जगतिविजयता भूरिभावानुभावी। दैवज्ञ कुण्डकुन्दप्रभुपदविनय स्वागमाचारचञ्चु ॥११३।। Colophon: इति श्रीमदिन्द्रनन्धाचार्य विरचितमिद समयभूषण समाप्तम ॥ शुभ भूयात् ॥ देखे-जि० र० को , पृ० २१६ ।। Catg. of skt & Pkt Ms., P. 660. २६८. नीतिसार Opening : श्रीमदुभलक्ष्मीरमणाय नम ॥ निम्रन्यसमय भूषणम् ।। देखे, क्र. ४४७ । Closing : साधन्त सिद्वशान्तिस्तुतिजिनगर्मजनुपोस्तु या द्वैत ॥ निष्क्रमणेयोग्यतं विधिश्रुताद्यपि शिवे शिवान्तमपि ॥ Colophon : नही है। २६६. न्यायकुमुदचन्द्रोदय Opneing : सिद्विप्रद प्रकटिताबिलवस्तुतत्त्वमानदमदिरमशेषगुणक पानम् । श्रीमज्जेिनन्द्रमकलकमनतवीर्य मानम्य लक्षणपद प्रवर प्रवक्ष्ये ॥१॥ Closing तत्स पत्तौ च मुमुक्षुजनमोक्षमाग्रौपेदशद्वारेण परार्थ स पत्तये सौचेपहत इति ॥ Colophon. इति श्री भट्टारकाकलङ्कशशाङ्कानुस्मृतप्रवचनप्रवेश समाप्तः। इति ग्रन्थ समाप्तः। - देखे-जि. र० को०, पृ० २१९ । ३००. पद्मनन्दि पंचविशतिका Opening: देखे-क्र० १८४॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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