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________________ ७६ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts ( Dharma, Darsana, Acara) २०१. चौबीस ठाणा Opening i Cloning : सिद्ध सुद्ध पणमिय जिणिंदवर णेमिचदमकलक । गुणरयणभूसणुदय जीवस्स परूवण वोच्छ । ए इदिय बियलाण इक्काणवदी हवति कुल कोडी । तिरिय(४३)नर(१४)देव (२६)नारय(२४)सगअट्ठा सहिय सद्धाण ॥ Colophon: इति चउवीस ठाणा समाप्ता । सवत् १७२५ वर्षे भादव वदि ९ वृहम्पतिवारे काष्ठासघी भट्टारक श्री महीचन्द्रजी तत्शिण्य पाडे भोवाल तेन लिखत स्वात्मार्थम् । विशेष—इसमे कुछ गाथाएँ गोम्मटमार की प्रतीत होती है । देखे, Letg of •kt & Fkt. Ms., P. 642. २०२. चौबीस गणगाथा Opening : गइइदियचकायेजोयेवेय कषायणाणेय ॥ सयम दसण लेस्सा भविया सम्मत्त सण्णि आहारे ॥१॥ Closing. उरपाँच सहनन वाले न माडे । तेरमे गुणस्थान तक । वज वृषभनाराचसहनन है ।। आगै सहनन ॥ हाड नाहि । ऐसा जिनवानी मे कया है । तीवानि धन्य है ॥५॥ Colophon . इति श्री पस्वुरणसमजनेलायकचर्चा ॥ सपूर्ण ॥ लिपीकृत लहिया करमचद रामजी पालीताणा नगरे ।। सवत् १९६६ भाद्रमासे कृष्ण पक्षे तिथि द्वितियाम् ॥ विशेष-कुछ गोस्मटसार की गायाएँ भी उद्धत हैं। २०३. चौदस गुणनियम Opening :: सचित्र दव विगइ वाणहि तबोल वच्छ कुसुमे । वाहण सयण विलेवण दिसि वभ न्हाण भत्तेसु ॥ Closing : इति चउदस नियम प्राभात मो कला राखी जैनध्याकू फर याद कीजे जितरामोकला राख्या था तिष मोउ वालागतो विपनाम होइ, अधिक न लगाई।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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