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________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain, Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Colophon . इति श्री चउदस गुण नियम सपूर्णम् । लिखत कूष स्यामजी ( श्यामजी ) सवत् १८१० माघशुक्ला १४ । कल्याणमस्तु । २०४. चौदह गुणस्थान Opening गुन आनमीक पटिनाम गुनी जीवनाम पदार्च ते आतमी परिनाम तीन जातके शुभ, अशुभ, शुद्ध । Closing : तिन सहित अविनाशी टकोत्कीर्ण उत्कृष्ट परमात्मा कहि । Colophon: यह चौदह गुणरथानक का स्वरूप सक्षेत्र मात्र जिनवाणी अनुसार कथन पूर्ण भया। इति श्री चौदह गुणस्थान चर्चा सम्पूर्णम । शुभसबत् १८६० मिती माघकृष्ण चतुर्दशी गुरुवासरे लिपिकृतम् नन्दलाल पाडे छपरामध्ये । २०५. नउसरण पईन्न Opening : सावज्जजोगविरहरु कित्तणगुण वय पडिवत्ता। खलियस्स निंदणावण तिगिब्ब गुणधारणा चेव ।। Colsing : इय जीव पमायमहारिवर सद्दतमेव मझयण । जाए सुति सजम वउ कारण निवुई सुहण ।। Colophon : इति श्री चउसरण पईन्न समाप्तम् । लिखत पूज्य ऋषि जी तस्य शिष्येण ऋषि लाखू आत्मार्थम् । सम्वत् १६८२ वर्षे चैत्रवदि ७। कल्याणमस्तु। Opening : Closing : २०६. चालगण देवधरमगुरु वदिक कह ढाल गणसार । जा अवलोके बुद्धि उर, उपज शुभकरतार ।। तहाँ काल अनता रहे सुसता अनअवहता सुखदानी । चिन्मूरति देवा ग्यान अभेवा सुरसुख सेवा अमलानी ।। अब जनमे नाही या भवमाही सबके साँई मवजानी। तुमकी जो ध्यावं तुमपद पावै कविटक कहै क्या अधिकारी ॥ इति चालगण सम्पूर्णम् । Colophon:
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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