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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library. Jain Siddhint Bhavan, Arrah
जैनी मारा मो रहे, काशिल गौत्र अग्रवाल ॥
महल्ले महाजन टोली अनुअल मे। सवत् १९५६ मिति फागुन शुक्ल १ वार गुरुवार ।
१९८. चर्चा सागर वचनिका
Opening i
श्री जिन वासुपूज शिवदाय । चपा पचकल्यान लहाय ।। विघ्न विडारन मगलदाय । सो वदो शरणाइ सहाय ।।
Closing :
चउपद के धुर वर्ण चउ, क्रम करि पक्ति अनूप । चर्चा सागर ग्रथ को, कर्ता नाम स्वरूप ॥
शास्त्र
सपूर्णम् ।
Colophon: इति श्री चर्चासागर नाम
शुभ भवतु।
१९९. चरित्रसार वचनि का
Opening : परमधरमरप नेमि सम, नेमिचद जिनराय ।
मगल कर अघहर विमल, नमो सु मनवचकाय ॥ . Closing :
अन्य ग्राम विप जो भिक्षा के निमित्त गमन ता विङ्ग नाही है उद्यम जाके वहुरि पाणिपुट मात्र ही है। Colophon: अनुपलब्ध। -
२००. चरित्रसार वचनिका
Opening : मुकतमा दसायकं कर्म सयल करि चूरि ।
___ वदी विश्व विलोकि को, इच्छू त्रयगुण भूरि ॥ Closing . .. जो याके अपराध समान मेरा भी अपराध है,
- ऐसा ही । Colophon I अनुपलब्ध ।