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________________ २६ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramgha & Hindi Manuscripts ( Purdda, Corita, Katha ) ६६. प्रद्युम्नचरित्र Opening : देबे, ऋ० ६३ । Cloring . देखे, ३० ६३ । Colophon: इति श्री प्रद्युम्नचरित्रे श्रीसोमकीर्ति आचार्यविरचि ते श्री प्रद्युम्नसवअनुरुद्धादि निर्वाणगमनो नामषोडश सर्ग । इति प्रय म्नचरित्र सम्पूर्णम् । स वत्सरे श्री विक्रमार्क भूपते स वत् १७६६ व ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे तिथी च नौम्या सोमवासरे । लिखत मुदकसागरेण तत् शिष्यसमीप तिष्ठते धामपुर मध्ये । जो उपजो ससार सर्व वस्तु का नाश है। तात इही विचार धर्म विर्ष चितराखना ।। - श्रीरस्तु मगल दद्यात् । विशेष --मवत् १७६५ वर्ष फागुणमामे शुक्लपक्षे द्वादसी दिने नादरसाहमाद शाह ने दिल्ली मे कतलाम किया मनुष्यो का प्रहर तीन । इस प्रति मे सर्गों की संख्या १६ है, जबकि अन्त मे श्लोक संख्या वही है । ६७. पुण्याश्रव कथा Opening : श्री वीरजिनमानस्य वस्नुतत्वप्रकाशकम् । वक्ष्ये कथामय अथ पुण्याश्रव विधानकम् ॥ Closing: रविसुतको पहलो दिन' जोय । अरु सुरगृरु को पीछे होय ॥ . बार यही गिन लीजों सही । तादिन अथ समापति लही ॥ Colophon: . इति श्री पुण्णाश्रव अथ भूल कर्ता रामचद्र मुनि टीका दौलतराम कृत सपूर्ण। सवत् १८७४ मिती माहसुदि ३ रविवासरे सपूर्ण कृतम् । । Opening . ' Closing : ६८. पुण्याधव कथा. देखें, ऋ०१७ । ' तीस्यौ पुकार छ। तव राजाबहीनवल ला ।।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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