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________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah विशेष- इसमे मात्र १४ सर्ग है, जवकि दिल्ली जिनग्रन्थ रत्नावली मे १६ सर्ग की प्रतियो के भी उपलब्ध होने की सूचना है। ., द्रष्टव्य-(१) दि० जि० ग्र० र०, प०, पृ० २२ । (२) 'जि० र० को०, पृ० २६४ । ' . (३) प्र० जै० सा०, पृ. १७६ । (४) आ० सू०, पृ० ६४। (५) रा. मू० II, पृ० २१३ । । (6) Catg. of Skt..& Pkt. Ms., P.670. ६४. प्रद्युम्नचरित्र Opening : ' देखें, ऋ० ६३ । Closing ! देखे ऋ०६३। । Colophon : इतिश्री प्रद्य म्नचरिते आचार्य श्री-सोमकीतिविरचिते श्री प्रय़ म्न अनिरुद्धनिर्वाणगमनो नामचतुर्दश सर्ग समाप्त । समाप्तर्मिद श्री प्रधुम्नचरितम् । वाच्यमान चिर नदन्तुं पुस्तक सवत् १७१७ वर्षे माघ सुदि २ दिने लिख्या समाप्तिनीत लेखिततश्च कुशलान्वये साहश्री बगूजी तत्पुत्र परम धार्मिक साह श्री रायसिंहजी 'केन । स्वकीय ज्ञातवृद्धयर्थम् । श्लोक-यादृश · ... • न दीयते ॥ ६५. प्रद्य म्नचरित्र' Opening :, . .देखे, ऋ० १३ । . .. Closing ..देखे, ऋ० ६३ ।। Colopnot | इति श्री प्रद्म म्नचरिते श्री सोमकी-चार्य विरचित ' ' ' , 'प्रझम्न शवअनिरूद्धादि निर्वाणगमनो नाम चतुर्दशः सर्गः। श्री मद्वि। क्रमभूपते-जिरसाद्री दुर्गते वत्सरे मासे फागुनि के दिने रवि सुते - रूद्राख्यकासत्तिथि तस्मिन्नेव लिपिकृतो गुवताराज्येविनण्टे मिती ग्रथो धनपतिसज्ञिनामतिमता कैराणकाख्ये पुरे।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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