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________________ ४० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Sari Devalcumar Jain Oriental Library. Jain Siddhant Bhavan, Arrah Colophon: उपलब्ध नही। ६६. पुण्याश्रव कथाकोष Opening : वर्द्धमान जिन वदिक, तत्वप्रकाशनसार। पुण्याश्रव भाषा कर भव्य जीवन हितकार ।। Closing : दान तना अधिकार यह, पूरा भया सुजान । बहुविध की सत्रुसम, भोवहु कर कल्यान ॥५६०६।। Colophon: इति श्री पुन्याश्रवविधाने ग्रंथ के सवानददिव्य मुनि शिप्य रामचंद्र विरचिते दान अधिकार समाप्त । पुन्याश्रव ये कथा रसाल । पूजादिक अधिकार विसाल । षट् अधिकार परम उतकिए। छापन कथा जासमै मिए । आदि पुरानादिक जे कहा। अभिप्राय सो यामै नहा ॥ आचारज जिय धरि अभिलाष । कीनो तास सस्कृत भाष । तास वचनकारूप सुधार। दौलतराम कथा वुधसार । तातै भावसिंध निज छद। आरभ किया चौपाई वद ।। प्रभु को सुमिरन ध्यानकर, पूजा जाप विधान । जिन प्रणीत मारग विष, मगन होहु मतिमान । १००. पुण्याश्रव कथाकोष Opening : देखें, क्र. ६७ ।। Closing : प्रभु को सुमरण ध्यानकर, पूजा जाप विधान । जिनप्रणीत मारगविष, मगन होहु मतिमान ॥ Colophon: इति श्री पुण्याश्रव कथाकोष भाषाजी राजभावसिंह कृत समाप्तम् । श्रीशुभ सवत् १९६२ तत्र वैशाखकृष्ण तृतीयाया लिपि कृतम् प० सीतारामशास्त्री स्वकरेण सहारनपुर नगरे । नोट :-लेखक का नाम भावसिंह होना चाहिए। Oprning : १०१. पुराणसार संग्रह पुरूदेव पुराणाद्य प्रणम्य वृषभ विभु। चरित तस्य वक्ष्यामि पुण्यमादशमाद्भवान् ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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