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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Sari Devalcumar Jain Oriental Library. Jain Siddhant Bhavan, Arrah
Colophon: उपलब्ध नही।
६६. पुण्याश्रव कथाकोष Opening :
वर्द्धमान जिन वदिक, तत्वप्रकाशनसार।
पुण्याश्रव भाषा कर भव्य जीवन हितकार ।। Closing : दान तना अधिकार यह, पूरा भया सुजान ।
बहुविध की सत्रुसम, भोवहु कर कल्यान ॥५६०६।। Colophon: इति श्री पुन्याश्रवविधाने ग्रंथ के सवानददिव्य मुनि शिप्य
रामचंद्र विरचिते दान अधिकार समाप्त ।
पुन्याश्रव ये कथा रसाल । पूजादिक अधिकार विसाल । षट् अधिकार परम उतकिए। छापन कथा जासमै मिए । आदि पुरानादिक जे कहा। अभिप्राय सो यामै नहा ॥ आचारज जिय धरि अभिलाष । कीनो तास सस्कृत भाष । तास वचनकारूप सुधार। दौलतराम कथा वुधसार । तातै भावसिंध निज छद। आरभ किया चौपाई वद ।।
प्रभु को सुमिरन ध्यानकर, पूजा जाप विधान । जिन प्रणीत मारग विष, मगन होहु मतिमान ।
१००. पुण्याश्रव कथाकोष Opening : देखें, क्र. ६७ ।। Closing : प्रभु को सुमरण ध्यानकर, पूजा जाप विधान ।
जिनप्रणीत मारगविष, मगन होहु मतिमान ॥ Colophon: इति श्री पुण्याश्रव कथाकोष भाषाजी राजभावसिंह कृत
समाप्तम् । श्रीशुभ सवत् १९६२ तत्र वैशाखकृष्ण तृतीयाया लिपि कृतम् प० सीतारामशास्त्री स्वकरेण सहारनपुर नगरे । नोट :-लेखक का नाम भावसिंह होना चाहिए।
Oprning :
१०१. पुराणसार संग्रह पुरूदेव पुराणाद्य प्रणम्य वृषभ विभु। चरित तस्य वक्ष्यामि पुण्यमादशमाद्भवान् ।