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द्वितीय भाग।
(१२३)
अंक द्वितिय-दृश्य पांचवा
साधू और ब्रह्मचारीजी आते हैं। · ब्रह्मचारी-कहिये साधूनी कुछ देखा?
सा०-मेरी समझ में यह बात नहीं पाई कि रावण को सहायता देने के लिये हनूमानजी के पिता पवनकुमार क्यों गये ?
व-साधुजी, मालूम होता है आपके हृदय से अभी यह नहीं गया है कि रावण राक्षस था और हनुमान बानर थे । मैं श्रापको स्पष्ट कर चुका हूं कि न तो रावण राक्षस ही था और न हनूमान वानर ही थे । राजा लोग हमेशा संकट में एक दूसरे की सहायता करते हैं। रावण ने राजा प्रहलाद के पास सहायता के लिये पत्र भेजा था । सो उसी क लिये वह गये थे।
सा०-अब मैं समझ गया । अगाड़ी तुम क्या क्या और दिखाओगे।
-अब हम पहले पवनकुममार का अंजना से मिलन दिखायेंगे । फिर किस प्रकार सासू के दोष लगाने से गर्भवती अंजना घर से निकल कर जंगलों में दुख पाती है। और वहां उसके हनुमानजी जन्म लेते हैं ये दिखायेंगे । इसके पश्चात हनुमानजी की वाल्यावस्था का वृतान्त स्पष्टतया दिखाकर इस भाग को समाप्त करेंगे। अगले भाग में राम के पिता दशरथ का वृत्तान्त और राम की उत्पत्ती दिखायेंगे ।