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श्री जैन नाटकीय रामायण ।
विचार किया । किन्तु तुम माता पिता से रण के लिये आज्ञा लेकर आये हो । तुम्हास अब लौट कर जाना उचित नहीं।
पवन-किन्तु भेरा तो उससे मिले बिना जीना ही दुर्लभ है । अहा, कैसी प्यारी सूरत है । वह कितनी सुन्दर है। संसार में उसकी बराबरी करने वाली दूसरी नहीं मिलेगी। कितनी कोमल हैं मानो सारी कोमलता की वह कोष है।
प्रहस्त-मित्र श्राकुलित न होइये मैं अभी इसका उपाय करता हूं। हम लोगों को यहां से छिपे तौर से जाना पड़ेगा। मैं अभी सेनापती को बुलाला हूं। आप उससे कहना कि हम सुमेरु पर्वत की यात्रा के लिये जारहे हैं। तुम सेना का ठीक प्रवन्ध रखना ।
पवन-अच्छी बात हैं जाओ। ' (प्रहस्त जाता है। लेनापती सहित आता है।)
सेनापती-(प्रणाम करके ) श्रीमान् ने सेवक को १ पहर रात्री गये किस लिये स्मरण किया है ?
पवन-हम लोग सुमेरु पर्वत की यात्रा के लिये जारहे हैं । सुबह होने तक लौट आयेंगे | तुम सेना' का प्रबन्ध ठीक रखना।
सेनापती-जैसी आज्ञा। (सेनापती रह जाता है । दोनों चले जाते है ) पर्दा गिरता है