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जम्बूस्वामी चरित्र विपुलाचलसे जम्बूस्वामीका निर्वाण ।
पश्चात् श्री जंबूस्वामी जिनेन्द्रने गंधकूटीमें स्थित हो उपदेश किया। स्वामीने मगधसे लेकर मथुरा तक व अन्य भी देशोंमें मठारह वर्ष पर्यन्त धर्मोपदेश देते हुए विहार किया। फिर केवली महाराज विपुलाचक पर्वपर पधारे । भाठों कर्मोंसे रहित होकर निर्वाणको प्राप्त हुए। नित्य अविनाशी सुखके भोक्ता होगये ।
पश्चात् महदास मुनीश्वर भी समाधिमरण करके छठे देवलोक पधारे । श्रीमती जिनमती मार्यिशाने स्त्रीलिंग छेद दिया और उत्तम समाधिमरण करके ब्रह्मोचर नामफे छठे स्वर्गमें इन्द्रपद पाया। चारों वधुएं मार्यिका पदमें चंपापुरके श्री वामपूज्य चैत्यालयमें थीं। वहां प्राण त्यागकर महर्द्धिक देवी हुई।
विद्युचर मुनि मथुरामें। विद्युच्चर नामके महामुनि तप करते हुए ग्यारह मंगके पाठी होगए । विहार करते हुए पांचसौ मुनियों के साथ एक दफे मथुराके महान दनमें पधारे । वनमें ध्यानके लिये बैठे कि सूर्य अस्त होगया । मानो सूर्य मुनियोंपर होनेवाले घोर उपसर्गको देखनेको असमर्थ होगया। उसी समय चंद्रमारी नामकी वनदेवीने मुनियोंसे निवेदन किया कि यहां भाजसे पांच दिन तक भापको नहीं ठहरना चाहिये । यहां भूत प्रेतादि भाकर भापको नाषा करेंगे, आप सहन नहीं कर सकेंगे। इसलिये माप सब इस स्थानको छोड़कर अन्य स्थानमें विहार कर जाओ। ज्ञानियों को उचित है कि संयम व