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जम्बूस्वामी चरित्र
मन वचन काय सम्बन्धी कोई दोषकी शुद्धिके लिये प्रथम प्रायश्चित्तः तपको स्वीकार किया। निश्चयरत्नत्रयरूपी शुद्धात्मीक धर्ममें तथा मरहंत मादि पांच परमेष्ठियोंमें विनय तपको करते थे। मुनिराजोंको नमस्कार व उनकी सेवाको नहीं उल्लंघन करते हुए, तीसरा सुखदाई कैय्यावृत्य तप पालन किया करते थे। शुद्धात्माके. अनुभवका अभ्यास करते हुए निश्चय स्वाध्यायरूपी चौथे परम तपका साधन करते थे। शरीरादि परिग्रहमें ममत्व भावको विलकुल दूर करके स्वामीने पांचमा व्युत्सर्ग तप साधन किया। सबसे श्रेष्ठ तर ध्यान है। सर्व चिंतासे रहित होकर चैतन्य भावका ही मालम्बन करके स्वामीने छठा ध्यान तपका माराधन किया। ये छः अंतरङ्ग शुद्ध तप मोक्षके कारण हैं। वैराग्यभावकारी स्वामीने दोष रहित इन सबोंको पाला । यथाजात स्वरूपके घारी मन, वचन, कायको. निरोध करके तीन गुप्तियोंको पालते थे । स्वामीने कषाररूपी शत्रु
ओंकी सेनाको जीतने के लिये कमर कस ली । शांतभावरूपी शस्त्रको लेकर उन कपार्योका सामना करने लगे। कामदेवकी स्त्री रतिको तो स्वामीने पहिले ही दूरसे ही भस्म कर दिया था। अब कामदेवरूपी योद्धाको लीला मात्र जीत लिया । द्रव्य व भाव श्रुतके भेदसे नाना प्रकार भर्थसे भरी हुई द्वादशांग वाणीके बुद्धिमान. जम्बु मुनि पार पहुंच गए थे।
सौधर्माचार्यका निर्वाण। इस तरह जब जंबुस्वामीको अनेक प्रकार तप करते हुए